जितिया व्रत क्यों करते है। 2022 में जितिया कब है जाने तारीख और सुभमुहूरत

Jitiya Vrat :- हिंदू धर्म में जितिया व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को माताएं अपने पुत्र- पुत्रीका यानी अपने बच्चों की  लंबी उम्र और कल्याण के लिए करती है यह व्रत कठिन व्रत में से एक है। यह हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती है। जिसमें अन्नं, फल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता है। 
जानते हैं इस व्रत की शुरुआत कैसे हुई और कब हुई?
गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन के नाग वंश की रक्षा के लिए स्वयं को पक्षीराज गुरूर का भोजन बनने के लिए सदैव तैयार हो गए थे। उन्होंने अपने साहस परोपकार के शंखचूर नामक नाग का जीवन बचाया था। उनके इस कार्य से पक्षीराज गुरुर बहुत प्रसन्न हुए थे और और नागों को अपना भोजन ना बनने का वचन दिया था। पक्षीराज गुरुर ने जीमूतवाहन को भी जीवनदान दिया था। इस तरह से जीमूतवाहन ने नागवंश की रक्षा की थी। इस घटना के बाद से ही हर वर्ष आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाने लगा। इस दिन गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा करने का विधान है। हिंदू धर्म के अनुसार इस व्रत को करने से पुत्र की दीर्घायु होती है और सुखी एवं निरोग रहते हैं।
जितिया व्रत की कथा 
गंधर्व के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था वो बड़े उदार और परोपकारी थे। जीमूतवाहन के पिता ने वृद्धावस्था में वानप्रस्थ आश्रम में जाते समय इनको राज्यसिंहासन पर बैठाया किंतु इनका मन राज्य पार्टी में नहीं लगता था वह राज्य का भार अपने भाइयों पर छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए
 वहीं पर उनका मलयबती नामक राज्य कन्या से विवाह हो गया। एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीमूतवाहन काफी आगे चले गए तब उन्हें एक वृद्ध विलाप करते हुए दिखी। इनके पूछने पर वृद्ध ने रोते हुए बताया मैं नागवंशी स्त्री हूं और मुझे एक ही पुत्र है। पक्षीराज गरुड़ के समक्ष नागों ने उन्हें प्रतिदिन भक्षण हेतु एक नाग सपने की प्रतिज्ञा की हुई है। आज मेरे पुत्र शंखचूर् की बलि का दिन है। जीमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वासन करते हुए कहा कि डरो मत मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज उसके बदले मैं स्वयं को उसके लाल कपड़ों में ढककर वध  शिला पर लेटूंगा। इतना कह कर जीमूतवाहन ने शंखचूर के हाथ से लाल कपड़ा ले लिया और वह उसे लपेट कर खुद को बलि देने के लिए चुनी हुई वध सिला पर लेट गया। नियत समय पर गुरुर आए और लाल कपड़ा में ढके जीमूतवाहन को पंजे में पकड़कर पहाड़ के शिखर पर जाकर बैठ गए। अपने पंजों में गिरफ्तार प्राणी की आंख में आंसू और मुंह से आह न निकलता देख कर आश्चर्य में पड़ गए।उन्होंने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा जीमूतवाहन ने सारी बातें बताई , गुरूर जी उनकी बहादुरी और दूसरों की प्राण की रक्षा करते हुए और उसके बदले खुद की प्राण को बलिदान देने की हिम्मत देखकर बहुत प्रसन्न हुए और गुरूर जी ने उनको जीवनदान दे दिया तथा नागों की बलि ना लेना का वरदान भी दे दिया। इस प्रकार जीमूतवाहन के अदम्य साहस से नाग जाती की रक्षा हुई और तब से पुत्र की सुरुक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की प्रथा शुरू हुई, और इसी वजह से इस व्रत का नाम जीमूतवाहन की वजह से जीवित्पुत्रिका भी रखा गया। अश्विन कृष्ण अष्टमी के प्रदोष काल में पुत्रवती महिलाएं जीमूतवाहन जी का पूजा करती है।
इस व्रत को करने का नियम: –
यह व्रत लगातार तीन दिन तक चलता है व्रत के एक दिन पहले नहाए खाए होता है। जिस दिन माताएं सुबह उठती है और आसपास के नदि या गंगा स्नान को जाती है। और उस दिन तरह-तरह के पकवान सब्जियां पकाती है। उस दिन नेनुआ का साग एवं मरुआ की रोटी खाने का नियम होता है। व्रत वाले दिन माता सूर्योदय से पहले 3–4 बजे के करीब उठकर दही–चुरा फल का सेवन करती है और अंतिम में पान खाती है। फिर उनका उपवास शुरू हो जाता है। उस दिन पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है और जीतवाहान देवता का पूजा पूरे विधि वधान से करती है एवं कथा करती है,भजन करती है प्रसाद चढ़ाती है फिर अगले दिन जब पारण करने का सही  समय होता है, तो पहले प्रसाद फल या गाय का दूध पीकर व्रत तोड़ती है।
Jitiya Vrat 2022 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 17 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 14 मिनट पर अष्टमी तिथि प्रारंभ हो रही है और 18 सितंबर को दोपहर 04 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर को रखा जाएगा। 17 सितंबर 2022, शनिवार को नहाए-खाय होगा। 18 सितंबर 2022, रविवार को निर्जला व्रत रखा जाएगा। 19 सितंबर को सूर्योदय के बाद व्रत पारण किया जाएगा।

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